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लेखनी प्रतियोगिता -23-Feb-2024 एक कुप्रथा




शीर्षक =  कुप्रथा 




ज़ब कोई रस्म या रिवाज़ किसी भी धर्म, जाती या समुदाय में एक पीड़ी से चल दूसरी, तीसरी और आने वाली अन्य पीड़ियों तक चलती रहती है तब वो एक रस्म या रिवाज़ न रहकर एक प्रथा बन जाती है जो की पूर्वजों के ज़माने से चली आ रही होती है लेकिन सिर्फ और सिर्फ वही रस्मे वही प्रथाएँ सही रहती है जो मानवता के हित में होती है ज़ब लगने लगे कि उनसे किसी का शोषण हो रहा है, किसी को बेवजह ही उन रस्मो उन रिवाजो को मानने के लिए धकेला जा रहा है तब वो प्रथा ना रहकर कुप्रथा बन जाती है और उसका अंत अगर सही समय पर नही किया जाये तो वो एक बड़ी तबाही की और इशारा करने लगती है।


जैसे जैसे जमाना बदलता गया तब तब कुछ ऐसे लोग धरती पर जन्म लेते गए जिनमे उन प्रथाओं को जड़ से उखेड देने का हौसला था सिर्फ हिंदुस्तान में ही नही बल्कि और देशो में भी बहुत सी ऐसी प्रथाओ को तूल दी जाती थी जिनसे सिर्फ दूसरों को नुकसान ही पहुँचता था।

जिसमे सबसे पहले आता है यूरोप जहाँ एक ज़माने में विच हंटिंग के नाम पर बहुत सारी महिलाओं को जादू टोना से जुडा होने की संभावना पाकर या फिर वो महिलाएं जो किसी तरह की अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत रखती थी उन्हें इस तरह के कामों में उलझा हुआ बता कर उन्हें इतना प्रताड़ित किया जाता था कि वो खुद को ख़त्म कर लेती थी

फिर धीरे धीरे इस प्रथा का खात्मा हुआ उसी के साथ नई आबादी बढ़ती गयी और कुछ नई रस्म रिवाज़ का जन्म होता गया जो कि आगे चल कर एक नई कुप्रथा में बदलती गयी

उसी दौरान हिंदुस्तान में भी बहुत सी ऐसी प्रथाएँ लोगो ने अंजाम देनी शुरू कर दी थी जिनका खात्मा अगर सही समय पर नही किया जाता तो शायद वो आज भी हमारे समाज का हिस्सा होती जिनमे से सती प्रथा का जिक्र अक्सर सुनने को मिलता है पति की मौत के बाद पत्नि को उसकी चिता के साथ ही जला दिया जाता था


आज के दौर में सबसे बड़ी प्रथा दहेज़ प्रथा है और उससे कही ज्यादा जो रिवाज़ एक कुप्रथा बनता जा रहा है वो है रंग बिरंगे खाने बनवा कर एक दिन के लिए लोगो को खुश करने के लिए खाने का अपमान है,जो न तो अच्छे से खाया ही जाता है सिवाय बर्बादी के कुछ नही होता


दहेज़ पर तो रोक लगना ही चाहिए उसी के साथ मेहमानों को ख़ुश करने के लिए रंग बिरंगे खानों पर भी सरकार को पाबन्दी लगा देनी चाहिए फिर चाहे वो लड़की वालो की तरफ से हो या लड़के वालो की तरफ से


एक दौर था ज़ब लोग मेहमानों को बैठा कर बड़े इत्मीनान से खाना परोस कर खिलाते थे भले ही व्यंजन कम होते थे लेकिन भर पेट खाया जाता था और अब व्यंजन तो भरपूर होते है कि मन भी मचल जाता है क्या खाये क्या छोड़े और इन्ही के चलते कुछ खाया ही नही जाता वो भी खडे होकर खुद लेकर


माना आपके पास पैसा है आप भरपूर अपनी शादी पर खर्चा करो लेकिन हर कोई अमीर नही होता और क्या पता आपने भी लोन लेकर शादी की हो लोगो को आपका लोन लेकर शादी करना नही दिखेगा अलबत्ता आपका खान पान सजावत दहेज़ देखकर अन्य लोगो के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है

बहुत सारी गरीब लड़कियां जो शादी के अरमान लिए अपने दिलों में बैठी होंगी उनके यहां कोई क्यू ही आएगा सब को ऐसा ही घराना चाहिए होगा जो उन्हें अच्छा दहेज़ दे पाए और खाना भी 56 भोग


सिर्फ लड़कियां ही नही लड़के भी मुसीबत में आ जाते है क्यूंकि फिर उन्हें भी दोगुनी मेहनत करनी पडती है खुद को उस मक़ाम पर लाने के लिए गलत कामों में पड़ जाते है तो कुछ यूं ही ईमानदारी की रस्सी थामे रह जाते है


शादी के नाम पर हो रहे इस दिखावे और आये दिन की नई नई रस्मो को जोड़ कर शादी को कुप्रथा बनने से रोकना होगा शादी को व्यापार नही बनने देना होगा।




समाप्त....
प्रतियोगिता हेतु...

किसी को कुछ बुरा लगा हो तो माफ़ी चाहते है 

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6 Comments

kashish

27-Feb-2024 02:38 PM

Awesome

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RISHITA

26-Feb-2024 04:30 PM

Awesome

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KALPANA SINHA

26-Feb-2024 11:27 AM

Nice

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